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ISSN 2292-9754
वर्ष: 21, अंक 281, जुलाई द्वितीय अंक, 2025
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प्रज्ञान
प्रज्ञान (रचनाकार -
डॉ. सत्यवान सौरभ
)
समाप्त
लेखक की कृतियाँ
ललित निबन्ध
बाँट रहे शुभकामना, मंगल हो नववर्ष
सावन मनभावन: भीगते मौसम में साहित्य और संवेदना की हरियाली
सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास!!
कविता
अब के सावन में
आयु का असीम स्पंदन
उम्र का एहसास
उम्र का सुरभित दीप
खिल गया दिग दिगंत
जब आँसू अपने हो जाते हैं
झूले वाले दिन आए
दक्ष की दीपशिखा
दर्द से लड़ते चलो
नहीं हाथ परिणाम
पहलगाम के आँसू
बोधि की चुप्पी
मख़मल की झुर्रियाँ
ये हरियाली की तस्वीरें झूठी हैं
रिक्त संपादकीय
वह घाव जो अब तक रिसते हैं
वैलेंटाइन पूछता
सहनशीलता की चुप्पी
सावन की पहली बूँद
सावन की सिसकी
सावन बोल पड़ा
स्वार्थ की सिलवटें
हे भारत की कोकिला . . .
साहित्यिक आलेख
आख़िर क्यों सही से काम नहीं कर पा रही साहित्य अकादमियाँ?
क्या पुरस्कार अब प्रकाशन-राजनीति का मोहरा बन गए हैं?
पुरस्कारों की बंदर बाँट
प्रसिद्धि की बैसाखी बनता साहित्य में चौर्यकर्म
लघुकथा
ज़रूरत का रिश्ता
फ़ैसला
हास्य-व्यंग्य कविता
बेचारा पौधा
मेहमान
दोहे
अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
आधुनिक तकनीक के फ़ायदे और नुक़्सान
आशाओं के रंग
आशाओं के रंग
उड़े तिरंगा बीच नभ
एक-नेक हरियाणवी
करिये नव उत्कर्ष
कहता है गणतंत्र!
कायर, धोखेबाज़ जने, जने नहीं क्यों बोस!!
कैसे उड़े अबीर
क्यों नारी बेचैन
गुरुवर जलते दीप से
चलते चीते चाल
चुभें ऑलपिन-सा सदा
जाए अब किस ओर
टूट रहे परिवार!
डाल सब्र के बीज
तुलसी है संजीवनी
दादी का संदूक!
देख दुखी हैं कृष्ण
देश न भूले भगत को
दो-दो हिन्दुस्तान
दोहरे सत्य
नई भोर का स्वागतम
पिता नीम का पेड़!
पुलिस हमारे देश की
फीका-फीका फाग
बढ़े सौरभ प्रज्ञान
बदल गया देहात
बन सौरभ तू बुद्ध
बूँद-बूँद में सीख
बैठे अपने दूर
मंगल हो नववर्ष
मन में उगे बबूल
महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल
रो रहा संविधान
रोम-रोम में है बसे, सौरभ मेरे राम
संसद में मचता गदर
सर्जन की चिड़ियाँ करें, तोपों पर निर्माण
सहमा-सहमा आज
हर दिन करवा चौथ
हर दिन होगी तीज
हरियाली तीज
हारा-थका किसान
हिंदी हृदय गान है
होगा क्या अंजाम
ख़त्म हुई अठखेलियाँ
सामाजिक आलेख
अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध!!
अपराधियों का महिमामंडन एक चिंताजनक प्रवृत्ति
आधी सच्चाई का लाइव तमाशा: रिश्तों की मौत का नया मंच
घर पर मिली भावनात्मक और नैतिक शिक्षा बच्चों के जीवन का आधार है
टेलीविज़न और सिनेमा के साथ जुड़े राष्ट्रीय हित
तपती धरती, संकट में अस्तित्व
दादा-दादी की भव्यता को शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है
देश के अप्रतिम नेता अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत का जश्न
नए साल के सपने जो भारत को सोने न दें
रामायण सनातन संस्कृति की आधारशिला
समय की रेत पर छाप छोड़ती युवा लेखिका—प्रियंका सौरभ
समाज के उत्थान और सुधार में स्कूल और धार्मिक संस्थान
सूना-सूना लग रहा, बिन पेड़ों के गाँव
सोशल मीडिया पर स्क्रॉल होती ज़िन्दगी
ऐतिहासिक
आर्यों का निवास और वैदिक संस्कृतियों-संस्कारों का घर हरियाणा
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को समझने में कठिनाइयाँ
हरियाणा प्रदेश के नाम की व्युत्पत्ति
सांस्कृतिक आलेख
जीवंत रीति-रिवाज़ों और परंपराओं से सजा मकर संक्रांति का उत्सव
भगवान विश्वकर्मा, शिल्प कौशल के दिव्य वास्तुकार
सांस्कृतिक और संस्कारिक एकता के मूल आधार हैं हमारे सामाजिक त्योहार
हमारी बोलचाल, प्यार, उलाहनों और कहावतों में सदियों से रचे बसे है श्रीराम
किशोर साहित्य कविता
ठंड हुई पुरज़ोर
पंछी
प्यारी चिड़िया रानी
बने संतान आदर्श हमारी
लाये सिंघाड़े
काम की बात
लाइक-कमेंट के चक्कर में मौत की रील
पर्यटन
बड़वा का प्राचीन झांग-आश्रम जहाँ बादशाह जहाँगीर ने डाला था डेरा
चिन्तन
आइये नव वर्ष में अपनी पसंद को क्षमताओं में बदलें
मन ही सब कुछ है। आपको क्या लगता है आप क्या बनेंगे?
स्वास्थ्य
क्या फ़ूड फ़ोर्टिफ़िकेशन, पोषण की कमी का नया रामबाण इलाज है?
सिनेमा चर्चा
अन्य देशों के साथ सम्बन्धों के निर्माण में भारतीय सिनेमा
विडियो
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पुस्तकें
लेखक की पुस्तकें
बाल-प्रज्ञान
खेती किसानी और पशुधन
प्रज्ञान
तितली है खामोश