ज़िन्दगी उनिंदी सी, आँख मलती रह गयी

01-06-2024

ज़िन्दगी उनिंदी सी, आँख मलती रह गयी

सुशील यादव (अंक: 254, जून प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

ज़िन्दगी उनिंदी सी, आँख मलती रह गयी
हम कहाँ ग़लत हुए, और क्या ग़लती रह गयी
 
रेत को निचोड़ कर तेल हम निकाल लें
उम्र उस गली के इर्द गिर्द, ढलती रह गयी
 
तुम इशारे कर सकी कब तमाम चाहतें
हर क़दम पे, कल्पनायें ही चलती रह गयी
 
हम नहीं फिसलती राहों के, राहगीर भी
बस कयामतें हमी पर, फिसलती रह गयी
 
हम तमाम रात काटा किए हैं याद में
रात भर शमा ए उम्मीद जलती रह गयी

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