झूले वाले दिन आए

15-07-2025

झूले वाले दिन आए

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

झूले वाले दिन आए, पायल की छनकार, 
घूँघट में लजाए सावन, रंग भरे हज़ार। 
काजल भीगे नैना, मेहँदी रचती हाथ, 
सखियाँ गाएँ गीत वो, जिसकी हो तलाश। 
 
पलाश और आम की, डालें हुईं जवाँ, 
झूले संग लहराए, मन की हर दुआ। 
बरखा की चूनर ओढ़े, धरती की ये माँ, 
हरियाली की चिट्ठियाँ, लेकर आई हवा। 
 
पथिक रुके हैं थमकर, सुनने बादल गीत, 
पगली नदी भी झूमें, बाँधें जल की रीत। 
बंसी फिर से बोले, कान्हा पुकारे राधा, 
मन मंदिर में बजे हैं, प्रेम भरे प्रभादा। 
 
झूले वाले दिन आए, हर मन रंग जाए, 
चुनरी सी उड़ती ख़ुशियाँ, कोई रोक न पाए। 
मौसम का ये तावीज़, बाँधे रिश्तों को पास, 
सावन जैसे हर जन को, दे प्रेम का प्रकाश। 

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