विराम

राहुलदेव गौतम (अंक: 179, अप्रैल द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

दैहिक और मानसिक
आनंद तो,
हमें कभी-कभी
कान खोदने में भी
मिल जाता है
क्या हम उसे
सार्वभौमिकता का नाम देते हैं?
अगर नहीं!
तो हमारे लिए आनंद
शब्द ही निरर्थक है
हाथ जलने पर
हाय-हाय करने से अच्छा है
गीली मिट्टी से
उसे त्वरित ठंडक दें
वरना सार्वभौमिकता भी
हमारे लिए नगण्य है
हमारी चेतना की
सार्वभौमिकता ही
हमारी शांति का दूसरा नाम है!

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