तुम्हारा आना

01-10-2022

तुम्हारा आना

राहुलदेव गौतम (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

तुम्हारा पहली बार आना!
तपती धूप में बादलों का आना हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
किसी दुलहन की हाथों में
सजी हो मेंहदी जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
कुछ भी न होने में
बहुत कुछ हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना!
 
नि:शब्द साँझ में
जीवन का नया उल्लास हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
कोई तलाश में
मिल गया हो वह जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
कितने सवालों में
एक तुम ही जवाब हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
एक शहर में
वहाँ मैं एक अकेला बाशिंदा हूँ जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
किसी जंगल में
झरने की हँसी हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
धुँधली स्मृतियों में
एक फूल खिला हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
इतने वर्षों में
फागुन की धूप हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
ख़्वाबों में
एक हक़ीक़त हुई हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
तारों में
कोई कमी हो गई हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
आँखों में
नयी सुबह हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
पंखुड़ियों में
नया शबाब हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
साँसों में
समय थम गया हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना!
 
आसमान में
केसर की लालिमा हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना!
 
हृदय मरुस्थल में
पानी की नमी हो जैसे! 
 
तुम्हारा आना! 
 
इस मौजूदगी में
आने-जाने का सिलसिला ख़त्म हो जैसे! 

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