कोई लौटा नहीं 

15-05-2023

कोई लौटा नहीं 

राहुलदेव गौतम (अंक: 229, मई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

सच है आदमी और समय में, 
बस इतना फ़र्क़ है! 
समय जब जाता है, 
कुछ नहीं बचता है! 
मगर आदमी जब जाता है, 
उसकी थाती रह जाती है! 
यहीं जाने और रह जाने में, 
जीवन की कला है! 
 
दिन की तपती धूप में, 
कहीं कोई झुलसा हुआ लगता है! 
कई अरमानों में जैसे नहाया हुआ लगता है! 
सुर्ख़ यह जो साँझ की लालिमा है, 
लगता है पहाड़ों के पीछे कोई चिराग़ जलाए बैठा है! 
शायद इंतज़ार की बेड़ियाँ पड़ी हैं, 
किसी के क़दमों पर! 
पर कोई लौटा नहीं . . .! 
हवाएँ लौट आईं, 
अपने दरख़्तों की कोख में! 
पर कोई लौटा नहीं . . .! 
बहते पानी की धार पर, 
रख के सूखे पत्तों पर कुछ अनसुलझी स्मृतियाँ, 
पर कोई लौटा नहीं . . .! 
यह सुबह की रेलगाड़ी कहाँ तक गई
पटरियाँ इंतज़ार करती हैं, 
पर कोई लौटा नहीं . . .! 
हमसे भी ज़्यादा दर्द है कई दिलों में, 
पर कोई कहता नहीं! 
हम कहते रहे हर बात, 
पर कोई लौटा नहीं . . .! 

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