अब लौट जाना
राहुलदेव गौतमबस अब लौट जाओ!
मेरी स्मृति,
मेरे अस्तित्व, मेरे भविष्य से
मेरे अतीत से।
बस अब लौट जाओ!
किसी चीज़ का खालीपन होना,
बहुत सी चीज़ों को भर देता है।
कुछ वक़्त का भी निखरना सही होता है,
कुछ सदमों का होना भी ज़रूरी होता है।
क्योंकि इसकी कोख में,
एक नये सच का जन्म होता है।
अस्पताल बन जाने से,
मौतें रुका नहीं करतीं।
और परिवर्तन भी नहीं रुकता
बस इसी सच को मान कर लौट जाओ!
तो बस लौट जाओ उसी तरह,
जैसे जीवन लौट जाता है
मौत की तरफ़।
ठीक उसी तरह,
जैसे यौवन लौट जाता है जरा की तरफ़।
जैसे लौट जाता है बचपन,
असंतुलित यौवन की तरफ़।
ऐसा इसीलिए,
क्योंकि मैं अब रुकना चाहता हूँ
एकाएक ठीक उसी तरह,
जैसे दीवार की घड़ी की सुइयाँ।
बस उसी तरह,
जैसे बहुत दूर लुढ़कती हुई कोई गेंद।
इसीलिए अब लौट जाओ!
जैसे हादसे लौट जाते हैं जीवन से,
जैसे बालों का रंग
सफ़ेदी की ओर लौट जाता है।
बस वैसे ही,
जैसे लौट जाते है आँसू,
ज़मीन की तरफ़।
ऐसा इसीलिए अब,
क्योंकि मैं अब बदलना चाहता हूँ,
अपनी कुछ परिचित आदतों को।
दुविधाओं से भरे जीवन में,
मैंने बहुत कुछ देखा है
मेरा घर भी जल रहा है,
और प्यास मेरे प्राण को निकाले जा रही है
पानी तो है मगर सबसे पहले किसे दूँ?
कहना तो है बहुत कुछ,
लेकिन चुप रहना चाहता हूँ।
मगर चुभन जुबाँ खोल ही देती है।
इसलिए मैं भी चलना चाहता हूँ,
वक़्त की चादर ओढ़े कहीं और..
तो लौट जाओ,
बस अब लौट जाओ।
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