पनाह

15-06-2024

पनाह

राहुलदेव गौतम (अंक: 255, जून द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

तुमसे रूबरू होकर, 
पता चला। 
कितने बेतरतीब से हमने
आधी ज़िन्दगी गुज़ार दी। 
 
मौत की मौजूदगी में भी कुछ
ख़लिश है वरना, 
चली आती मौत भी, 
जितना मैंने तुम्हें आवाज़ दी। 
 
ये शाम भी आहिस्ता आहिस्ता ढले तो
ख़ुद को और समझा लेते, 
बूँद से पानी और पानी से बूँद
कुछ ऐसे ही हमने यहाँ अपने को पनाह दी। 

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