मैं तुम्हारा कुछ तो सच था

15-10-2022

मैं तुम्हारा कुछ तो सच था

राहुलदेव गौतम (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

चलो भम्र ही सही 
मैं तुम्हारा कुछ तो सच था! 
ये माना कि मैं वो सच नहीं
पर यह झूठ मानने में, 
मैं तुम्हारा तब तक तो सच था! 
 
साँझ की सिहरन में न सही
तुम्हारे ख़ालीपन में मौजूदगी न सही
आँखों में बल की छांही से
फैले काजल की स्याही में
मैं तुम्हारा कुछ तो सच था! 
 
तुम्हारे हसरतों के क़ाफ़िलों में
बाद मुद्दतों में
सफ़र के पगडंडियों में
जो सब छूट गया था
उसका हर एक जगह-जगह उसमें, 
मैं तुम्हारा कुछ तो सच था! 

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