मायने

राहुलदेव गौतम (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मैंने जब भी तुम्हें, 
अपनी ऑंखों के जलजलों में, 
ढूँढ़ना चाहा . . . 
तुम मेरी उदास रातों की गहराई निकली! 
 
मैं किस मुग़ालते में था
रिश्तों के लिबास में, 
वो मेरी रूह की आग की परछाईं निकली! 
 
मेरे पास पैसे बहुत कम हैं, 
लेकिन उसे गिनता बहुत हूँ! 
इक तेरा रंज था, 
जिसे गिनता बहुत कम था, 
उसे अपने पास रखता बहुत हूँ! 

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