सच बनाम वह आदमी

15-12-2020

सच बनाम वह आदमी

राहुलदेव गौतम (अंक: 171, दिसंबर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

देखा था मैंने
एक शाम एक आदमी को
श्मशान के बीचों-बीच
एक लाश को ले जाते
उसे उठाते उसे जलाते
फिर हाथों को धोते
कफ़न के कुछ टुकड़े उठाते
कंधों पर उसे लपेटते
वह कहीं जाता है
कहीं दूर . . . 
कुछ देर बाद . . . 
फिर एक लाश के साथ
उसी श्मशान में आता है
फिर उसे जलाता है
कुछ राख उठाता है
गमछे में बाँधता है
लेकर चला जाता है
फिर कहीं दूर . . .
फिर एक लाश कंधों पर टिकाये
घुटती साँसों से श्मशान की ओर जाते
देखा था मैंने
एक शाम एक आदमी को
श्मशान के बीचों-बीच
क्या था वह?
जीने की ज़िद
या
मरने की एक बेबाक कोशिश
क्या था वह?
सत्य का स्वरूप
या
जीवन का प्रतिरूप
क्या था वह?
 

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