मेरा गुनाह

01-07-2020

मेरा गुनाह

राहुलदेव गौतम (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

गुनाह है मेरी आँखें जो चुपचाप रो देती हैं
गुनाह है मेरे शब्द जो ज़हर घोल देते हैं
गुनाह है मेरे हाथ जो बेबसी में उठते नहीं
गुनाह है मेरा जीवन जो पीड़ा को जी लेता है
गुनाह है मेरा वर्तमान जो तमाशगीर बन बैठा है
गुनाह है मेरी दुआ जो बेअसर हो जाती है
गुनाह है मेरा पेट जो भूख सह लेता है
गुनाह है मेरी साँसें जो घुट-घुट कर रह जाती हैं
गुनाह है मेरे आँसू जो बेवज़ह बह जाते हैं
गुनाह है मेरे चराग़ जो अँधेरों में जल जाते हैं
गुनाह है मेरा प्रेम जो दर्द से समझौता कर लेता है
गुनाह है मेरॊ रूह जो बंधन में रह जाती है
गुनाह है मेरा पाँव जो उम्मीदों पर चल पड़ता है
गुनाह है मेरा सच जो सरेआम हो जाता है
गुनाह है मेरा हर रिश्ता जो हर बार टूट जाता है
गुनाह है मेरी आवाज़ें जो किसी को सुनायी नहीं देती हैं
गुनाह है मेरी इंसानियत जो बेशर्त बेइज़्ज़त होती है
गुनाह है मेरी आशाएँ जो बार-बार जन्म लेती हैं
गुनाह है मेरी भूख जो जीने को विवश कर देती है
गुनाह है मेरा जन्म जो हर ज़ुल्म सह लेता है
गुनाह है मेरा विश्वास जो सब कुछ ख़ुदा मान बैठा है
गुनाह है मेरी मौत जो इस तरह जीने देती है.....

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