माँ के लिए

01-04-2022

माँ के लिए

राहुलदेव गौतम (अंक: 202, अप्रैल प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

ज़िन्दगी में हारने और जीतने से पहले
मैं, माँ के लिए एक घर बनवाना चाहता हूँ
जैसे उसने कभी बचाया था मुझे
धूप, बरसात, जाड़े से! 
उस घर में अब सुरक्षित रह सके, 
धूप, बरसात, जाड़े से माँ! 
 
हाँ मैं, माँ के लिए एक घर बनवाना चाहता हूँ
जिसके आँगन में तुलसी के पौधे पर
सुबह-सुबह पूजा करे जल चढ़ाये माँ, 
और कुछ गीत भी गाए माँ, 
जिसे सुनकर हल्की नींद से, 
मैं सुकून से जाग सकूँ माँ! 
 
मैं, माँ के लिए एक घर बनवाना चाहता हूँ
जिसके हर कोने में माँ के क़दमों की
चहल-पहल हो, 
जिसके हर खिड़की से, 
चिड़ियों की चहचहाना, 
उनके गीतों को सुन सके माँ, 
जैसे कभी लोरी सुनाया करती थी मुझे माँ! 
 
मैं, माँ के लिए एक घर बनवाना चाहता हूँ
कि जब भी मैं, 
कहीं से घर आऊँ
तो घर के द्वार पर, 
बच्चों को हर शाम, 
क़िस्से-कहानियाँ सुनाते हुए मिले माँ! 
 
मैं, माँ के लिए एक घर बनवाना चाहता हूँ
जिसके आँगन में, 
इंतज़ार में बैठी हुई माँ, 
कभी मुझसे देर से घर आने का कारण पूछे, 
और कभी डाँट सके माँ! 
 
मैं, माँ के लिए एक घर बनवाना चाहता हूँ! 

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