अधूरा

राहुलदेव गौतम (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

उठती है रोज़ एक सुबह
खुलता है एक चारदीवारी का दरवाज़ा
फिर सुबह मिल गयी साॅंझ से
फिर मिल गया
एक शख़्स दरवाज़े से
उसके बाद का संसार क्या है? 
उस आदमी को पता नहीं
बस इस संसार और उस आदमी के बीच
बच जाता है . . . सिर्फ़! 
 . . . मौन! 

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