समर्पण

राहुलदेव गौतम (अंक: 254, जून प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

जाने से पहले
हम दोनों के बीच, 
जो निःशब्दता की दीवार थी! 
उस तरफ़ तुम बेचैन थे
इस तरफ़ मैं! 
जानते हो, शायद! 
यही बेचैनी तुम्हारा और मेरा एकांत समर्पण था . . .! 

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