कुछ ख़त मेरे

15-05-2022

कुछ ख़त मेरे

राहुलदेव गौतम (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

तुम हर जगह शामिल थी
बस मेरे सच में 
तुम नहीं थी, 
लेकिन एक सच यह भी है
मैं जीने के लिए
कभी-कभी ख़ुद को एक
छलावा देता रहा हूँ! 
 
है कितने दृश्य
परिदृश्य के अतल तल में
नभ की बूँद
है एक दृश्य में
क़दम तेरे तल-तल में! 
 
अधर तेरे कंठ तल में, 
चिर क्षुधा रहूँ
हृदय तेरे सम-समतल में! 
 
कठोर मन नेत्रतल
अनुभूतियों का अथाह भूतल
तड़प-तड़प के भुन रहा हूँ
जैसे तड़प रहा है शुष्क, सिक्त! 
थार-जल, थार-जल, थार-जल में! 
 
मैं एक बार शामिल होना चाहता हूँ
तेरे जुनून में! 
जैसे कोई बच्चा
मसरूफ़ होता है अपने खिलौने में! 
 
तानपूरे के राग में
बहता है मेरे मन का चुप . . . 
तुम नि:शब्द होकर, 
इसको एक झनकार दे जाओ! 
 
हमने अभी तक स्वीकारा नहीं
इसलिए ज़िन्दा हैं, 
जिस दिन स्वीकार लेंगे
उस दिन तुम क्या रह जाओगी? 

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