फ़ुरसत में आज की रात

15-05-2021

फ़ुरसत में आज की रात

राहुलदेव गौतम (अंक: 181, मई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

फ़ुरसत में आज की रात
गुज़र जाने दे,
जीवन के चंद लम्हों को,
आज ठहर जाने दे!
 
क्या-क्या हिसाब रखूँ
बीते जलजलों का,
बस ग़म ए मदहोशी में
आज उतर जाने दे!
 
अब न हक़ीक़त है
न फ़रेब न शिकवा शिक़ायत,
छोड़ इस कश्मकश को दिल,
अब घर जाने दे!
 
तेरे इरादों को न समझ सका
कभी ज़िंदगी,
बख़्श दे अपनी हुकूमत से,
आज मुझे मर जाने दे!
 
घुट-घुट कर जीना ए दिल
बहुत हो चुका
आख़री साँसों में आज,
कोई नया शहर जाने दे!
 
खुलकर इबादत तेरी 
कर न सके ऐ ख़ुदा,
न सम्हाल मुझें आज,
अपनी नज़रों में गिर जाने दे!
 
मिट गई ख़ुद की हस्ती
इंसानियत को बचाते-बचाते,
अब खिलौनों की तरह
वक़्त की चाभी से भर जाने दे!

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