जागे हुए

01-02-2025

जागे हुए

राहुलदेव गौतम (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)


हमने नहीं देखी सुबह की पहली किरण
हमने महसूस नहीं की रात की गहराई
हमने महसूस किया . . .! 
दोपहरी के जलते पाँव का दर्द। 
अपने ही भीतर मरे सपनों का दर्द। 
भीतर से ही जकड़े कुछ अपनों की रंजिशों का दर्द। 
हमने महसूस किया . . .! 
अब तक
एक खेल था, एक नदी थी। 
धूप थी पर छाँव नहीं। 
एक बोझ है एक ख़लिश है। 
एक खिला फूल है उस पे एक ओस है। 
हमने महसूस किया . . .! 
हँसी से ही पता चलता है अब
ख़ुशी है या दर्द। 
अब कुछ भी ना कहो सब बयाँ होता है। 
एक ख़ामोशी में। 

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