अनकही

राहुलदेव गौतम (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

कहीं से कोई आवाज़ आ जाने दो
वो कहीं रुका है, उसे भी आ जाने दो 
 
बात सिर्फ़ मतलब की होगी क्या पता
पहले दिल की बात, आँखों में आ जाने दो
 
क्या टूटा था हमारे बीच कुछ याद नहींं
बस यह गाँठ खुले तो खुल जाने दो 
 
तकलीफ़ों के बोझ से जो रिश्ता चला था
अगर वो हल्का होता है तो हो जाने दो 
 
आँसुओं को रोक न पाये तो ग़लत क्या
जो अनकही रह गयी है, वह बह जाने दो
 
कब, क्या, कैसे हुआ सब, इसका अर्थ नहींं
इन सवालों को सवाल ही रह जाने दो

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