आदमी जब कविता लिखता है

01-10-2022

आदमी जब कविता लिखता है

राहुलदेव गौतम (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

जब बाहर कुछ खो कर
अपने अन्तः मन कुछ पाने बैठता है
तब आदमी कविता लिखता है! 
 
अपने होने का अर्थ
परिभाषा में गढ़ने जब बैठता है
तब आदमी कविता लिखता है! 
 
स्मृतियों की अँधेरी रातों में
जब ख़ुद को टटोलने बैठता है
तब आदमी कविता लिखता है! 
 
जो था, जो नहीं है, जो है मेंरे पास
उसे पेश करने जब बैठता है
तब आदमी कविता लिखता है! 
 
कुछ रोता है, कुछ गाता है
बिना आवाज़ों के, 
जब कुछ ख़ास कहने बैठता है
तब आदमी कविता लिखता है! 
 
कुछ जाने, कुछ पहचानने
कुछ दृश्य और अदृश्य
जीवन के पैमाने को भरकर, 
जब लम्हा-लम्हा ख़ाली होने बैठता है
तब आदमी कविता लिखता है! 

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