मैं किन्नर हूँ

15-10-2022

मैं किन्नर हूँ

राहुलदेव गौतम (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मैं किन्नर हूँ, 
मैं पुरुष को पुरुष बनकर देखता हूँ
और औरत को औरत बनकर! 
फिर भी मैं अलग हूँ
शारीरिक विकारों से
फिर भी मैं अलग हूँ
शब्दों के लिंग से! 
समाज के सभी आंकड़ों से
मैं सवाल नहीं पूछता
क्योंकि मेरा जवाब ताली है
और मेरे ताली के बाद॥
कोई सवाल नहीं पूछता! 
 
पर मुझे मालूम है, 
हर जगह हर व्यक्ति में
एक किन्नर जन्म लेता है
उसकी सोच में, 
उसके दृष्टिकोण में! 
बस उसे वह गुप्त शक्ल देता है! 
ना जाने वह किस रंग में
किस रूप में
सुबह से शाम पेश करता है! 
बस वह ताली नहीं बजाता
इस ताली से, 
बस इस ताली से एक पहचान है 
कि वह किन्नर है! 
पर ताली हर जगह बजती है
मगर उसका अर्थ अलग-अलग है! 
बिन ताली के भी किन्नर होते हैं
बस पनपते हैं मतिष्क में! 
हम बाहर हैं और उनकी
एक गुप्त शक्ल में! 
इसलिए मैं सवाल नहीं पूछता
मेरा जवाब ताली है! 
मैं तो बार बार मरता हूँ
लेकिन उनका किन्नर बार बार जन्म लेता है
किसी नये रूप में
किसी नयी शक्ल में!!!

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