कई ज़माने रखता हूँ
राहुलदेव गौतमकुछ किताबें पढ़कर जब
सिरहाने रखता हूँ
अपनी उम्र के हिसाब से
कई फ़साने रखता हूँ॥
जहाँ खो गये हो तुम
मुझे पता है लेकिन,
बस यादों में तेरे ठिकाने रखता हूँ॥
कुछ रखूँ या ना रखूँ
तेरी यादों की दास्तां,
तेरे काग़ज़ के नाव पुराने रखता हूँ॥
भले ही आज मुझसे
तेरा कोई इल्म नहीं,
मैं अपने गीतों में
बस तेरे तराने रखता हूँ॥
मैं अपने गिरेबां में एक
चिराग़ जला लेता हूँ,
मैं ख़्यालों में तेरे
कई ख़ज़ाने रखता हूँ॥
तेरी आँखों के सामने
कई हुकूमतें गुज़रेंगी,
मैं भी तेरे लिए कई उम्र
कई ज़माने रखता हूँ॥
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