साॅ॑झ

राहुलदेव गौतम (अंक: 219, दिसंबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

एक चुप सी गहराई में, 
तुम्हारी यादों की साॅ॑झ
डूब रही है . . .! 
 
कितना ख़लिश है ज़ुबाँ में कि, 
हम तुम्हें, 
अपने ख़्वाबों का हक़ीक़त न कह सके! 
 
एक साॅ॑झ ठहरती है, 
मेरे दिल के कोने में
कोई है, जो आता है, 
यहाँ एक चराग़ जलाने! 
 
माना कि यह मन मानता नहींं, 
वो है, कि नहीं है! 
वह सच था, 
यह मन जानता ज़रूर है! 

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