साॅ॑झ
राहुलदेव गौतमएक चुप सी गहराई में, 
तुम्हारी यादों की साॅ॑झ
डूब रही है . . .! 
 
कितना ख़लिश है ज़ुबाँ में कि, 
हम तुम्हें, 
अपने ख़्वाबों का हक़ीक़त न कह सके! 
 
एक साॅ॑झ ठहरती है, 
मेरे दिल के कोने में
कोई है, जो आता है, 
यहाँ एक चराग़ जलाने! 
 
माना कि यह मन मानता नहींं, 
वो है, कि नहीं है! 
वह सच था, 
यह मन जानता ज़रूर है! 
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
 - 
              
- अधूरा
 - अनंत पथ पर
 - अनकही
 - अनकही
 - अनसुलझे
 - अनुभव
 - अनुभूति
 - अन्तहीन
 - अपनी-अपनी जगह
 - अब कोई ज़िन्दा नहीं
 - अब लौट जाना
 - अस्तित्व में
 - आँखों में शाम
 - आईना साफ़ है
 - आज की बात
 - आजकल
 - आदमी
 - आदमी जब कविता लिखता है
 - आयेंगे एक दिन
 - आवाज़ तोड़ता हूँ
 - इक उम्र तक
 - उदास आईना
 - उस दिन
 - एक किताब
 - एक छोटा सा कारवां
 - एक तरफ़ा सच
 - एक तस्वीर
 - एक तारा
 - एक पुत्र का विलाप
 - एक ख़ामोश दिन
 - एहसास
 - कल की शाम
 - काँच के शब्द
 - काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता
 - किनारे पर मैं हूँ
 - कुछ छूट रहा है
 - कुछ बात कहनी है तुमसे
 - कुछ यादें
 - कुछ ख़त उसके
 - कुछ ख़त मेरे
 - कोई अज्ञात है
 - कोई लौटा नहीं
 - गेहूँ और मैं
 - चौबीस घंटे में
 - छोटा सा सच
 - जलजले
 - जागे हुए
 - जीवन इधर भी है
 - जीवन बड़ा रचनाकार है
 - टूटी हुई डोर
 - ठहराव
 - तराशी हुई ज़िंदगी
 - तहरीर
 - तालाब का पानी
 - तुम्हारा आना
 - तुम्हारा एहसान
 - दर्द की टकराहट
 - दिन की सूनी पुरवाइयाँ
 - दीवार
 - दीवारों में क़ैद दर्द
 - दो बातें जो तुमसे कहीं थीं
 - द्वंद्व
 - धरती के लिए
 - धार
 - धारा न० 302
 - धुँध
 - निशानी
 - पत्नी की मृत्यु के बाद
 - परछाई
 - पल भर की तुम
 - पीड़ा रे पीड़ा
 - फोबिया
 - बनकर देखो!
 - बस अब बहुत हुआ!!
 - बारिश और वह बच्चा
 - बाज़ार
 - बिसरे दिन
 - बेचैन आवाज़
 - भूख और जज़्बा
 - मनुष्यत्व
 - मरी हुई साँसें – 001
 - मरी हुई साँसें – 002
 - मरी हुई साँसें – 003
 - मशाल
 - माँ के लिए
 - मायने
 - मुक्त
 - मुक्ति
 - मृगतृष्णा
 - मेरा गुनाह
 - मेरा घर
 - मैं अख़बार हूँ!
 - मैं किन्नर हूँ
 - मैं डरता हूँ
 - मैं तुम्हारा कुछ तो सच था
 - मैं दोषी कब था
 - मैं दोषी हूँ?
 - रास्ते
 - रिश्ता
 - लहरों में साँझ
 - वह चाँद आने वाला है
 - विकल्प
 - विराम
 - विवशता
 - शब्द और राजनीति
 - शब्दों का आईना
 - संवेदना
 - सच चबाकर कहता हूँ
 - सच बनाम वह आदमी
 - सच भी कभी झूठ था
 - सपाट बयान
 - समय के थमने तक
 - समय पर
 - समर्पण
 - साॅ॑झ
 - सफ़र (राहुलदेव गौतम)
 - हँसो हँसो
 - हम जान नहीं पाते
 - हादसे अभी ज़िन्दा हैं
 - ख़ामोश हसरतें
 - ख़्यालों का समन्दर
 - ज़ंजीर से बाहर
 - ज़िन्दा रहूँगा
 
 - नज़्म
 - विडियो
 - 
              
 - ऑडियो
 -