अब कोई ज़िन्दा नहीं

01-01-2024

अब कोई ज़िन्दा नहीं

राहुलदेव गौतम (अंक: 244, जनवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

दो आँखें हैं जो थकती नहीं। 
कुछ फ़ासले हैं कम होते नहीं। 
कोई नदी है इनके बीच, 
जो बहती नहीं है। 
कोई गाँठ है जो खुलती नहीं। 
कुछ रंग है जो घुलते नहीं। 
कुछ आवाज़ है जो आती नहीं। 
कुछ टूटा है जो बिखरता नहीं। 
बड़ी अजीब बात है, 
मेरे अंदर है जो शोर करता नहीं। 
एक छत है उस पर कोई जाता नहीं। 
चाँद से अब कोई बात करता नहीं। 
धुआँ-धुआँ है आईनों का शहर, 
अब उसमें कुछ साफ़-साफ़ दिखता नहीं। 
जीते तो है यहाँ चेहरों के रूप में, 
पर सच में अब कोई ज़िन्दा नहीं॥
पर सच में अब कोई ज़िन्दा नहीं॥

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