निशानी

राहुलदेव गौतम (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

आज अपने घर की, 
उस कच्ची दीवार को टूटते हुए देखा! 
एक बार बरसात के दिनों में
बारिश से बचने के लिए, 
हम-तुम पहली बार इसके अवलंब में
पास-पास बैठे थे, 
और उसकी सीलन से, 
हमारे कपड़े नम हो गये थे, 
तुम्हें याद हो कि न हो, 
लेकिन मेरे लिए तुम्हारे यादों का
एक संबल टूट गया . . .! 

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