उस सावन सी बात नहीं है
डॉ. सुकृति घोष
सावन की रिमझिम में बंधु, उस सावन सी बात नहीं है
दिव्य रुचिर हैं नन्ही बूँदें, हरियाली भी आज नवल है
लेकिन बंधु इस मौसम में, उस मौसम सी बात नहीं है
रजत तड़ित की श्वेत प्रभा में, कजरारे मेघों का गर्जन
लेकिन बंधु इस बिजुरी में, उस बिजुरी सी बात नहीं है
सावन की रिमझिम में बंधु, उस सावन सी बात नहीं है
सतरंगी मनभावन अंबर, धूप छाँव का स्वप्निल जंगल
लेकिन बंधु इस अंबर में, उस अंबर सी बात नहीं है
मस्त पवन का चंचल विचरण, शीतलता का उसमें संगम
लेकिन बंधु इस बयार में, उस बयार सी बात नहीं है
सावन की रिमझिम में बंधु, उस सावन सी बात नहीं है
मधुवन में नभचर का नर्तन, मधुकर के गीतों का गुंजन
लेकिन बंधु इस बहार में, उस बहार सी बात नहीं है
होंठों पर संगीत सजाकर, इठलाऊँ आँचल लहराकर
लेकिन बंधु इन नग़्मों में, उन नग़्मों सी बात नहीं है
सावन की रिमझिम में बंधु, उस सावन सी बात नहीं है
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