गजकेसरी: एक अनूठा योग
डॉ. सुकृति घोष
देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा अत्यंत रूपवती और लावण्यमयी स्त्री थी। चंद्रमा, देवगुरु बृहस्पति के शिष्य थे। एक बार चंद्रमा तारा के सौंदर्य पर मोहित हो गए, तारा भी सुदर्शन चंद्रमा को बहुत पसंद करने लगी। प्रेमपाश में बँधकर वे दोनों विवेकहीन हो गए। यहाँ तक कि तारा, चंद्रमा के साथ ही रहने लगी और बृहस्पति के समझाने पर भी नहीं लौटी। तब बृहस्पति और चंद्रमा के बीच घोर युद्ध होने लगा। क्योंकि यह युद्ध तारा की कामना के कारण हुआ था इसलिए इसका नाम ताराकाम्यम् पड़ा। शुक्राचार्य और सारे असुर चंद्रमा के साथ हो लिए तथा देवता गण बृहस्पति का साथ देने लगे। इस भीषण युद्ध को देखकर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी को सृष्टि के विनाश की चिंता सताने लगी, तब वे तारा को समझा बुझाकर बृहस्पति को लौटने में सफल हुए। तत्पश्चात् चंद्रदेव भी अपनी भयंकर भूल का तीव्रता से अहसास कर पश्चाताप की अग्नि में जल उठे। कुछ समय उपरांत तारा ने एक संतान को जन्म दिया जो बेहद बुद्धिमान था, इसलिए उसका नाम बुध रखा गया। जब तारा से बुध के पिता का नाम पूछा गया तो उसने चंद्रमा का नाम लिया। इस अनैतिक सम्बन्ध से क्षुब्ध बुध, अपनी माता तारा तथा चंद्रमा से सदैव के लिए क्रोधित हो गए। इसलिए ज्योतिष में बुध, चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं। जबकि चंद्रमा बुध को अपना मित्र क्योंकि बुध तो उनका ही पुत्र है। समय के साथ ज्ञानवान और विवेकशील देवगुरु बृहस्पति ने अपने विशाल हृदय का परिचय देते हुए तारा और चंद्रमा को क्षमा कर दिया।
गुरुदेव बृहस्पति ज्ञान, बुद्धि, विवेक, विद्या, धर्म और मोक्ष के कारक हैं। विद्या, बुद्धि, ज्ञान और धर्म के बिना जातक जीवित होते हुए भी निष्प्राण ही होता है, तभी तो बृहस्पति को जीव कारक भी कहा जाता है। अर्थात् सही अर्थों में जीवनदायक। विशालतम ग्रह के रूप में विख्यात सौम्य और नैसर्गिक शुभता के धनी बृहस्पतिदेव, कुंडली में सबसे अधिक कारकत्व के अधिकारी हैं। चंद्रमा चंचल हैं, प्रतिदिन एक नक्षत्र को भोगते हुए आगे बढ़ते हैं। मन भी तो इतना ही चंचल होता है, तभी तो चंद्रमा मन के कारक हैं। जैसे जल में कोई भी रंग घोला जाए तो वह उसी रंग का हो जाता है या जिस पात्र में डाला जाए उसका ही आकार ले लेता है, उसी प्रकार मन पर भी संगति का बहुत असर पड़ता है। तभी तो चंद्रमा जल और तरल पदार्थों के भी कारक हैं। माँ के निर्मल सुखदायक सानिध्य की तुलना चंद्रमा की शीतल ज्योत्स्ना से की जा सकती है, तभी तो चंद्रमा माता के भी कारक हैं।
मन के कारक चंद्रमा तथा ज्ञान और विवेक के कारक बृहस्पतिदेव जब आपस में केंद्र में होते हैं, अर्थात् यदि चंद्रमा, बृहस्पति से कुंडली के 1, 4, 7, 10 स्थान में हों तो जातक की कुंडली में एक बहुत महत्त्वपूर्ण योग बनता है, जिसे गजकेसरी योग कहते हैं। इस योग में मन तथा विवेक एकीकृत हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में मन ज्ञानवान तथा विवेकशील होकर कार्य करने लगता है, ऐसी स्थिति में सफलता अवश्यंभावी हो जाती है। चंद्रमा ने किसी समय विवेकहीन होकर गुरुमाता से प्रेम सम्बन्ध बनाया था, इसलिए ग्लानि में भरकर पश्चाताप करते हुए चंद्रमा, गजकेसरी योग में जातक के मन को ज्ञानवान और विवेकशील बनाकर बृहस्पति का साथ देते हैं, और गुरुदेव बृहस्पति के द्वारा दिए जाने वाले फलों की वृद्धि करते हैं।
बृहस्पति को कुंडली में सबसे अधिक कारकत्व प्राप्त है, अतः वे उन सभी भावों के फलों को प्रभावित करते हैं जिनके कारकत्व उनके पास हैं। कुंडली में गुरुदेव जिन भावों के स्वामी होते हैं उनके फल तो करते ही हैं साथ ही उनके पास तीन दृष्टियाँ भी होती हैं अतः वे जिन भावों पर दृष्टियाँ डालते हैं, उन भावों के भी फलों को भी प्रभावित करते हैं। गजकेसरी योग में चंद्रमा, बृहस्पति के फलों को बढ़ा देते हैं, इस कारण गजकेसरी योग अत्यधिक महत्त्वपूर्ण योग माना जाता है। यदि चंद्रमा बलवान हो तो वह बृहस्पति को और भी अच्छी तरह से मदद कर पाते हैं, अर्थात् यदि चंद्रमा स्वराशि, उच्च राशि या मूल त्रिकोण राशि में हो तथा पूर्ण बली हो तो बृहस्पति के फलों को और अच्छे से बढ़ाने में सहयोग करते हैं। गजकेसरी योग कितना कारगर होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि बृहस्पति और चंद्रमा किन भावों में हैं, किन राशियों में हैं, किन भावों के स्वामी हैं, कितने बलवान हैं तथा उन पर किन ग्रहों की दृष्टि है। बृहस्पति यदि शुभ भावों के स्वामी हो तो चंद्रमा उनके शुभ फलों को बढ़ा देते हैं। इसके विपरीत यदि बृहस्पति अशुभ भाव के स्वामी हों तब भी चंद्रमा, बृहस्पति के अशुभ फलों को बढ़ाने का काम करते हैं। उदाहरण के लिए यदि माना कि किसी जातक का लग्न कर्क राशि का है और गुरु और चंद्रमा लग्न में ही युति कर रहे हैं। अर्थात् गजकेसरी योग लग्न में ही बन रहा है। इस स्थिति में धनु राशि छटवें भाव में तथा मीन राशि नवम भाव में होगी। लग्न में बन रहे इस योग के कारण जातक बहुत ज्ञानवान और विवेकशील होगा तथा निरंतर स्वउन्नयन के लिए प्रयासरत होकर सफल भी होगा। भाग्य भाव में मीन राशि के होने से जातक भाग्यशाली होगा। हो सकता है उसके पिता धार्मिक या आध्यात्मिक रूप से उच्च स्तरीय दृष्टिकोण रखते हों, विख्यात हों या जातक को अपने पिता का बहुत सहयोग प्राप्त होता हो या वह अपने पिता से बहुत प्रभावित हो। लेकिन बृहस्पति की राशि छठवें भाव में भी पड़ रही है तब बृहस्पति छटवें भाव के फल भी देंगे और चंद्रमा उसे भी बढ़ाएँगे। हो सकता है जातक को जीवन में अनेक प्रतियोगिताओं का सामना करना पड़े अथवा उन्नति की राह पर चलते चलते जातक ने स्वयं ही अपने शत्रुओं की संख्या बढ़ा ली हो। जीवन के इस संघर्ष को चंद्रदेव और भी बढ़ा देंगे। इसी प्रकार यदि किसी जातक की कुंडली में गजकेसरी योग बन रहा हो तथा बृहस्पति अष्टम भाव के स्वामी भी हों तब बृहस्पति आठवें भाव के जो भी ऋणात्मक फल देंगे, चंद्रमा उसे भी बढ़ाने का ही काम करेंगे। गजकेसरी योग यदि किसी जातक की कुंडली के केंद्र या त्रिकोण के भावों में ही बन रहा हो तो यह अति उत्तम फलदायक माना जाता है। लेकिन अशुभ भावों में बनने पर यह योग उतना अधिक फलदायक नहीं रह जाता।
यदि गुरु और चंद्रमा की युति होती है तो जातक तेज दिमाग़ वाला, तुरंत निर्णय लेने वाला, धार्मिक, परोपकारी तथा स्वयं के बल पर सफलता प्राप्त करने वाला होगा। इस प्रकार के गजकेसरी योग में जातक विवेकशील होकर, ज्ञान का उपयोग करके, सन्मार्ग पर चलकर उस भाव के फलों की बढ़ोतरी करने में मन लगाता है, जिसमें यह युति होती है। इस योग में जातक के उसकी माता के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध हो सकते हैं, जातक अपनी माता से अथवा जातक की माता जातक से अत्यधिक प्रभावित हो सकती हैं। जातक की माता सुसंस्कारी, सच्चरित्र तथा विवेकशील हो सकती हैं। इसके अलावा गुरु के स्वामित्व वाले, गुरु के कारकत्व वाले तथा गुरु से दृष्ट होने वाले भावों के फलों की वृद्धि तो होती ही है।
यदि चंद्रमा, बृहस्पति से चौथे भाव में हो तो, इस गजकेसरी योग में जातक अपने घर के रखरखाव तथा उन्नति के लिए सदैव प्रयासरत रहकर सफलता प्राप्त करने में सक्षम होता है। इस प्रयास में, कभी-कभी जातक बार-बार घर भी बदलता है। इस स्थिति में हो सकता है कि जातक की माता का जातक के घर पर बहुत प्रभाव रहता हो, या जातक अपनी माता को अपना आदर्श मानता हो। यदि अशुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो जातक अपने घर पर परम शान्ति और सुख का अनुभव करता है। यदि अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक की माता को अथवा जातक को भावनात्मक उतार-चढ़ाव का सामना भी करना पड़ सकता है। इसके अलावा बृहस्पति से सम्बन्धित अन्य भावों के फलों में वृद्धि तो होती ही है।
यदि चंद्रमा बृहस्पति से सातवें भाव में हो तो ऐसी स्थिति में बृहस्पति की चंद्रमा पर तथा चंद्रमा की बृहस्पति पर दृष्टि पड़ती है। जातक संतुलित व्यक्तित्व के धनी होते हैं। इस गजकेसरी योग में मन और विवेक के संगम से जातक अपनी इच्छानुसार पढ़ाई करके सफल हो सकता है। जातक अपने वैवाहिक जीवन को अपने मन बुद्धि से संतुलित करने में प्रयासरत रहता है। इस स्थिति में जातक के पति या पत्नी की मनोदशा त्वरित बदलाव लिए हुए हो सकती है। जातक की पति या पत्नी जल्दबाज़ी में काम करने वाला हो सकता है। जातक की वैवाहिक जीवन में उनकी माता का प्रभाव अधिक भी हो सकता है। इसके अलावा बृहस्पति से सम्बन्धित अन्य भावों के प्रभाव भी बढ़कर ही प्राप्त होते है।
यदि चंद्रमा बृहस्पति से दसवें घर में हो तो जातक अपने व्यवसाय अथवा नौकरी में उत्कृष्टता पाने के लिए अपनी बहुत सारी ऊर्जा ख़र्च कर, सदैव प्रयासरत रहता है और सफलता भी प्राप्त करता है। इसलिए इस गजकेसरी योग में जातक बार-बार अपनी नौकरी या व्यवसाय को बदलता भी है। इसके अलावा बृहस्पति से सम्बन्धित अन्य भावों के फलों में बढ़ोतरी तो होती ही है।
गजकेसरी योग यदि अच्छी स्थिति में बन रहा हो तो जातक सफलता के विभिन्न पड़ावों को पार करता हुआ यशस्वी होता है। मन का विवेकशील तथा ज्ञानवान होना ही गजकेसरी योग है। गज अर्थात् हाथी, जिसमें अपार शक्ति और बुद्धि होती है और केसरी अर्थात् सिंह जिसमें अदम्य साहस और तीव्रता होती है। अतः अदम्य साहस, शक्ति, बुद्धि और तीव्रता से सफलता प्रदान करवाता है, यह अनूठा गजकेसरी योग।
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