पंछी अब तुम कब लौटोगे? 

29-02-2024

पंछी अब तुम कब लौटोगे? 

डॉ. सुकृति घोष (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

भले शाम हो बहुत सुहानी, ढलते ढलते ढल जाएगी
नीड़ दूर है, पथ लंबा है, पंछी अब तुम कब लौटोगे? 
 
पग-पग मायाजाल का घेरा, व्याधों का भी यहाँ बसेरा
देह बचाकर मन को थामे, पंछी अब तुम कब लौटोगे? 
 
माना पर में ओज बहुत है, नयनों में भी तेज बहुत है
लेकिन रीता अंतस भरने, पंछी अब तुम कब लौटोगे? 
 
कई हैं तेरे सहचर साथी, पथ में फिर भी तुम एकाकी
अपनेपन की क्षुधा मिटाने, पंछी अब तुम कब लौटोगे? 
 
समय रेत बिंदु की भाँति, पल में बिखरा फिसला जाए
थामके इसकी चंचल धारा, पंछी अब तुम कब लौटोगे? 
 
दूषित वन है मैला तन है, पवन के कण भी धूसर धूसर
स्वच्छ निलय में दीप जलाने, पंछी अब तुम कब लौटोगे? 

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