शिक्षक
डॉ. सुकृति घोषअनगढ़ माटी से बचपन से, सुंदर सुगठित मनुज बनाता
स्वच्छ श्यामपट अंतस में, नेक चॉक से लिखता जाता
मृदु नाज़ुक अँगुलियों को, क़लम की दृढ़ता सिखलाता
गहन तमस सी जड़ता में, ज्ञान रश्मियाँ बहुल सजाता
अस्थिर बेतरतीब हृदय को, अनुशासित एकाग्र बनाता
बुद्धिहीनता के दलदल में, संबल बनकर राह दिखाता
जीवन के मंजुल प्रांगण को, शिष्टाचार से रम्य बनाता
अनुशीलन के दुष्कर पथ में, पुष्प परिश्रम के बिखराता
कभी स्नेह से कभी दंड से, सच्चाई की डगर दिखाता
शिष्यों के जीवन नियमों में, अजर अमर हो बस जाता
राष्ट्र का निश्छल माली बन, संस्कारों का बाग़ लगाता
उच्च चारित्र गुणों का सर्जक, वो शिक्षक ही कहलाता
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