खो जाना है
डॉ. सुकृति घोष
स्मृतियों के कानन से चुनकर,
पुष्प सुवासित हृदय लगाकर,
दूर कहीं सो जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
दूर क्षितिज के पार उतरकर,
धरती अंबर की मिलन छाँव में,
दूर कहीं बस जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
अति विराट रत्नाकर तट पर,
लहर लहर पर झूम झूमकर,
दूर कहीं तर जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
अरुणोदय की रक्त रश्मियाँ,
मुखमंडल पर आलोकित कर,
दूर कहीं तप जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
व्याकुलता का परित्याग कर,
अधरों पर संगीत सजाकर, दूर
कहीं छुप जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
निर्झरिणी के शीतल निर्मल,
कलकल बहते जल के संग संग,
दूर कहीं बह जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- सांस्कृतिक आलेख
- कविता
-
- अवकाश का अहसास
- आनंद की अनुभूति
- आस का इंद्रधनुष
- आख़िर बीत गई दिवाली
- एक अलौकिक प्रेम कहानी
- क्या अब भी?
- खो जाना है
- गगरी का अंतस
- जगमग
- दीपावली की धूम
- दीपोत्सव
- नम सा मन
- नश्वरता
- नेह कभी मत बिसराना
- पंछी अब तुम कब लौटोगे?
- पथ की उलझन
- प्रियतम
- फाग की तरंग
- मन
- मृगतृष्णा
- राम मेरे अब आने को हैं
- राही
- लम्हें
- वंदनीय शिक्षक
- शब्द शब्द गीत है
- शिक्षक
- साँझ
- सुनो सुनाऊँ एक कहानी
- होलिका दहन
- ज़िंदगी
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-