मृगतृष्णा

15-10-2023

मृगतृष्णा

डॉ. सुकृति घोष (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

मरुभूमि की निर्जल घरती, 
पग पग पर मृगजल का भ्रम है
सुख तलाश की आतुरता में, 
पथ विचलन की आशंका है
 
पल दो पल का रैन बसेरा, 
आज यहाँ, कल यहाँ नहीं है
रिक्त खोखली मन की गठरी, 
बोझिल आख़िर क्या कुछ है
 
यायावर सा पथिक चला है, 
आज कहीं फिर और कहीं है
बिखरी बिखरी ठहरी सी यादें, 
क्षण प्रतिक्षण उत्कंठा है
 
अतिशय चिंतित आकुल व्याकुल, 
विह्वल मन में भटकन है
कहीं कभी तो ठौर मिलेगा, 
मृगतृष्णा ही मृगतृष्णा है

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