राम मेरे अब आने को हैं
डॉ. सुकृति घोष
सघन कुहासा छँटने को है, अरुण रश्मियाँ छाने को हैं
रात तमस की ढलने को है, राम मेरे अब आने को हैं
बरस कई अब बीत चले हैं, अश्रु नयन में सूख चले हैं
आस पुष्प अब खिलने को है, शंखनाद भी होने को है
दीप से झिलमिल द्वार द्वार हैं, ढोल मँजीरे ताल ताल हैं
कण कण वसुधा राम नाम है, नभ में गुंजित नाम राम है
क्षोभ विकलता खोने को है, सुख की आहट होने को है
अधरों पर मुस्कान सजे हैं, उल्लसित मन आज रमे हैं
पग पग पथ में कुसुम बिछे हैं, स्वागत वंदनवार सजे हैं
अंबक अंबक स्वप्न सुभग हैं, अंतस अंतस नेह सजल हैं
राम मगन यह जग उपवन है, चहुँओर अब रामचंद्र हैं
प्यास हृदय की बुझने को हैं, राम मेरे अब आने को हैं
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