मन

डॉ. सुकृति घोष (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

कभी तो पूनम कभी अमस सा, मन मेरा जैसे चंद्र कला सा
कभी तो झिलमिल कभी तमस सा, मन मेरा जैसे दूर गगन सा
कभी तो रिमझिम कभी तपन सा, मन मेरा जैसे इक मौसम सा
कभी तो रूखा कभी तरल सा, मन मेरा जैसे जग आँचल सा
कभी तो बंजर कभी विपुल सा, मन मेरा जैसे वसुंधरा सा
कभी तो कड़वा कभी मधुर सा, मन मेरा जैसे इक विस्मय सा
कभी तो पावक कभी अतप सा, मन मेरा जैसे कोई भ्रमित सा
कभी तो दिनकर कभी चंद्र सा, मन मेरा जैसे इक जादू सा
कभी तो दुष्कर कभी सरल सा, मन मेरा जैसे इक सवाल सा
कभी तो पावन कभी कपट सा, मन मेरा जैसे इक अबूझ सा
कभी तो हँसमुख कभी खिन्न सा, मन मेरा जैसे क्षणभंगुर सा
कभी तो भोगी कभी संत सा, मन मेरा जैसे बहुरुपिए सा

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