क्या अब भी?
डॉ. सुकृति घोष
बीते दिन की यादें बंधु, कभी तुझे भी आती होंगी
कभी सुनहरी श्वेत घटाएँ, नैनों को भरमाती होंगी
कभी पवन से कभी गगन से, बतियाने की फ़ुरसत होगी,
रिमझिम वर्षा के अमिय नीर में, तर जाने की मोहलत होगी,
क्या अब भी तेरी स्वप्निल आँखें, मुस्कानों से सजती होंगी?
बीते दिन की यादें बंधु, कभी तुझे भी आती होंगी
कभी सुनहरी श्वेत घटाएँ, नैनों को भरमाती होंगी
कभी मित्र से कभी स्वजन से, मिलने की अकुलाहट होगी,
अतिथि के सत्कार से बंधु, कली हृदय की खिलती होगी,
क्या अब भी तेरे हृदय कुंज में, विमल चाँदनी बसती होगी?
बीते दिन की यादें बंधु, कभी तुझे भी आती होंगी
कभी सुनहरी श्वेत घटाएँ, नैनों को भरमाती होंगी
कभी लेखनी गीत ग़ज़ल का, हाथ थामकर चलती होगी,
कॉपी के पिछले पन्ने पर छिपकर, प्रेम छंद दोहराती होगी,
क्या अब भी तेरे भाव सरित में, कोमलताएँ बहती होंगी?
बीते दिन की यादें बंधु, कभी तुझे भी आती होंगी
कभी सुनहरी श्वेत घटाएँ, नैनों को भरमाती होंगी
कभी लड़कपन की यादों में, हँसी लबों पर खिलती होगी,
ख़त में लिपटी प्रीत की ख़ुश्बू, तन-मन को महकाती होगी,
क्या अब भी तेरी तन्हा शामें, स्मृतियों के संग ढलती होंगी?
बीते दिन की यादें बंधु, कभी तुझे भी आती होंगी
कभी सुनहरी श्वेत घटाएँ, नैनों को भरमाती होंगी
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