दीपोत्सव
डॉ. सुकृति घोषआओ मंगल दीप जलाएँ, ख़ुशियों का त्योहार मनाएँ
आओ आँगन द्वार सजाएँ, तन मन में उल्लास जगाएँ
भले रैन हो घोर अमावस, कण कण में आलोक सजाएँ
मास कार्तिक सुखद ऋतु में, प्रीत प्रभा से जग चमकाएँ
स्वच्छ हृदय से, स्वच्छ निलय में, माँ कमला को हर्षाएँ
शुचिता के इस दिव्य पर्व में, रूप गुणों को ख़ूब सजाएँ
आओ मंगल दीप जलाएँ, ख़ुशियों का त्योहार मनाएँ
आओ आँगन द्वार सजाएँ, तन मन में उल्लास जगाएँ
ज्ञान चेतना बुद्धि दीप से, कलुष तिमिर को दूर भगाएँ
प्रेम दया और करुण दीप से, उत्सव का आनंद बढ़ाएँ
सुख वैभव संतोष दीप से, जगत प्रकाशित करते जाएँ
मधुर बोल के चारु दीप से, शीतल मंजुल द्युति फैलाएँ
आओ मंगल दीप जलाएँ, ख़ुशियों का त्योहार मनाएँ
आओ आँगन द्वार सजाएँ, तन मन में उल्लास जगाएँ
नवल वस्त्र से नवल मोद से, अंतःस्थल को नवल बनाएँ
पकवानों के रुचिर स्वाद से, रिश्तों में नव रस भर लाएँ
आतिशबाज़ी की धूम धाम में, क्रोध लोभ को बिसराएँ
श्रीराम की इस स्वागत वेला का, पर्व धूम से ख़ूब मनाएँ
आओ मंगल दीप जलाएँ, ख़ुशियों का त्योहार मनाएँ
आओ आँगन द्वार सजाएँ, तन मन में उल्लास जगाएँ
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