सुनो सुनाऊँ एक कहानी
डॉ. सुकृति घोषएक थी न्यारी राजकुमारी, राजा और रानी की दुलारी
सबकी आँखों का तारा थी, नाज़ों नख़रों की पाली थी
बड़ी बड़ी आँखों वाली थी, प्यारी सी और नटखट सी
बेहद सुन्दर और भोली थी, बहुत विदूषी ज्ञानवान थी
बचपन बस जाने वाला था, यौवन द्वारे आन खड़ा था
अपने रूप, गुणों से उसने सबके मन को जीत रखा था
एक रोज़ सखियों के संग, उपवन में हँस बोल रही थी
सुंदर, सुगठित एक युवक भी वहाँ अचानक आया था
निकट देश का राजपुत्र था, किसी प्रयोजन आया था
रूपवती कन्या को सहसा नज़र में भरकर देखा था
प्रेम के आकर्षण ने तरुण को सम्मोहन में जकड़ा था
तत्क्षण अपना हृदय गँवाकर अपने देश को लौटा था
दूत के हाथों कन्या हेतु परिणय का संदेशा भेजा था
बुद्धिमती उस कन्या ने तब एक अनोखी शर्त रखी थी
"राजयुवक से मुझको अपने मन के प्रश्न को कहना है
समुचित उत्तर पाकर ही मैं परिणय बंधन स्वीकारूँगी"
उस राजकुँवर को राजा ने सम्मान सहित बुलवाया था
प्रेमपाश में बँधा नवयुवक युवती के देश में आया था
समारोह आयोजित कर राजा, हर्षित हो मुस्काया था
कन्या और नवयुवक को उसने सभा मध्य बैठाया था
कन्या बोली युवक को, "मेरे मन में केवल यही सवाल,
क्या अच्छा लगता है बोलो, क्यों चाहत है मुझसे बोलो
रूप से, गुण से, संस्कार से या फिर मेरे राजवंश से
क्यों है इतनी आसक्ति, किस कारण से है इतना प्यार"
सधे हुए आकर्षक स्वर में, नौजवान कुछ ऐसे बोला
जैसे हो कोई देव की वाणी, जैसे कोई वीणा की लहरी
"भौतिक यह संसार है कन्या, मैं भी अछूता नहीं यहाँ
मनमोहक है रूप सुनहरा, सुन्दरता की देवी हो तुम
गुण विहीन पर रूप न भाता, यही तो इसका भेद है
जन्मों के संस्कार के कारण हैं ये उत्तम लक्षण, कन्या
वंश और परिवार के कारण, सुंदर शिक्षा, ज्ञान व विद्या
पर इन सब बातों का कारण एक वही है जो है आत्मा
आत्मा के कर्म फलों से, उत्तम तुमको जन्म मिला है
अंतःकरण के कर्मों से, धरती पर तुमको स्वर्ग मिला है
रूप, संस्कार, गुण और वंश सब कर्मों की खातिर हैं
वही चेतना, शुद्ध आत्मा, कारण मेरे प्यार का, कन्या"
युवक का उत्तर सुनकर कन्या सुधि अपनी खो बैठी थी
पलभर में नवयुवक को उसने सौंप दिया मन मंदिर था
राजकुँवर को राजा ने झटपट, अपने हृदय लगाया था
ढोल नगाड़े खूब बजे, कन्या ने वर का वरण किया था
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