पथ की उलझन

01-04-2023

पथ की उलझन

डॉ. सुकृति घोष (अंक: 226, अप्रैल प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


राही चलते चलते अक़्सर, बारम्बार ठिठकता है
क्या छूटा है पथ में पीछे, जिसकी आहें भरता है
कितने अपने खोए उसने, नयन नीर छलकाता है
छूटे अनगिन रिश्ते-नाते, तप्त हृदय अकुलाता है
जीवन की क्षणभंगुरता से, आशंकित हो जाता है
 
खोया बचपन कोरा दामन, विह्वल हो घबराता है
बाल्यकाल की निश्छलता, याद सदा ही करता है
क्या कुछ पाया उसने पथ में, बेचैनी से गिनता है
धूलि कणों से मैला दामन, देख देख डर जाता है
व्यर्थ द्वंद्व और दंभ के लक्षण अंतर्मन में पाता है
 
प्रेमनीर से धोकर अपना, निर्मल मन महकाता है
निकटजनों की नेह छाँव में, प्राणसुधा को पाता है
आनंदित हो पथ में राही, आस पुष्प बिखराता है
राही अब भी चलते चलते, बारम्बार ठिठकता है
लेकिन हर्षित उत्साहित सा, आगे बढ़ता जाता है

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