आख़िर बीत गई दिवाली
डॉ. सुकृति घोष
आख़िर बीत गई दिवाली
रूप, उमंग, उछाह समेटे
झिलमिल दीप क़तार समेटे
नित नवीन शृंगार समेटे
मंजुल वंदनवार समेटे
आख़िर बीत गई दिवाली
मिष्ट अन्न का स्वाद समेटे
आतिशबाज़ी की धूम समेटे
शुभ शुभ की झंकार समेटे
थकन अलस की नींद समेटे
आख़िर बीत गई दिवाली
तेरी मेरी प्रीत समेटे
मोहक मिश्री याद समेटे
दिलों का मंगलहार समेटे
अधरों की मुस्कान समेटे
आख़िर बीत गई दिवाली
सतरंगी अहसास समेटे
चार दिवस अवकाश समेटे
मित्र स्वजन का स्नेह समेटे
अद्भुत आस मयूख समेटे
आख़िर बीत गई दिवाली
अनुपम सा अनुराग समेटे
अचल सुखद वरदान समेटे
नयन दीप आलोक समेटे
फिर आने की बात समेटे
आख़िर बीत गई दिवाली
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