बारहवाँ भाव: मोक्ष या भोग 

01-11-2024

बारहवाँ भाव: मोक्ष या भोग 

डॉ. सुकृति घोष (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

किसी भी कुंडली के चौथे, आठवें और बारहवें भाव को मोक्ष त्रिकोण कहा जाता है जिसमें से बारहवाँ भाव सर्वोच्च मोक्ष भाव कहलाता है। लग्न भाव से कोई आत्मा शरीर धारण करके पृथ्वी पर अपना नया जीवन प्रारंभ करती है तथा बारहवें भाव से वही आत्मा शरीर का त्याग करके इस जीवन के समाप्ति की सूचना देती है, अर्थात्‌ इस भाव से ही आत्मा शरीर के बंधन से मुक्त हो जाती है और अनंत की ओर अग्रसर हो जाती है। तभी तो कहा जाता है कि बारहवें भाव की कोई सीमा नहीं है। मोक्ष की प्राप्ति ही प्रत्येक आत्मा का अंतिम लक्ष्य होता है। मोक्ष की प्राप्ति को इसी भाव से देखा जाता है। मोक्ष का अर्थ है जीवन मरण के चक्रव्यूह को तोड़कर बाहर निकल जाना अर्थात्‌ निःसीम परमात्मा में विलीन हो जाना, तभी तो इस भाव का अत्यधिक महत्त्व है। इस भाव के कई महत्त्वपूर्ण कार्यकत्व हैं। मोक्ष के साथ-साथ इस भाव से भोग-विलास भी देखा जाता है। यह भाव शैयासुख का स्थान भी है। भोग-विलास की भी कोई सीमा नहीं होती क्योंकि भोग की एक इच्छा पूरी होते ही दूसरी इच्छा बलवती होने लगती है। यह भाव व्यय का भी भाव है। व्यय भी सीमा रहित होता है। अपने देश की सीमा रेखा लाँघकर विदेश गमन भी इसी भाव से देखा जाता है। साथ ही अस्पताल, जेल, आश्रम तथा पागलख़ाना भी इसी भाव से देखे जाते हैं। कुंडली के अन्य सभी भावों से बारहवें भाव को जोड़कर इसके कार्यकत्वों को आसानी से समझा जा सकता है। बारहवें भाव का भावेश विभिन्न भावों में स्थित होकर अलग-अलग परिणाम देता है। 

यह भाव लग्न से बारहवाँ है। यह भाव शरीर के व्यय को इंगित करता है। अतः जातक के शरीर की ऊर्जा का व्यय किस प्रकार होगा, यह भाव इसकी जानकारी देता है। जातक के शरीर की ऊर्जा का व्यय मोक्ष प्राप्ति में होगा अथवा भोग विलास में अथवा साधना में अथवा विदेश में अथवा कहीं और यह सब बारहवाँ भाव बता सकता है। यदि बारहवें भाव का भावेश लग्न में स्थित हो जाए तो वह लग्न का व्यय करवाता है, अर्थात्‌ जातक या तो बहुत मेहनत करता है अथवा उसकी प्रकृति अत्यधिक भोग विलास की हो सकती है अथवा उसकी रुचि मोक्ष प्राप्ति की ओर हो सकती है। वह या तो सांसारिक चीज़ों से बहुत अधिक जुड़ाव रख सकता है अथवा संन्यास की ओर अग्रसर हो सकता है। इसके अलावा जातक विदेश जाने का इच्छुक भी हो सकता है, और यह सब ग्रहों की स्थितियों पर निर्भर करता है। यह स्थिति बहुत अच्छी नहीं मानी जाती। पत्रिका में अगर यह स्थिति बनती है तो जातक को अपना अहंकार अवश्य ही छोड़ना चाहिए तभी वह इस स्थिति के कुप्रभावों से बच सकता है। 

बारहवाँ भाव दूसरे का ग्यारहवाँ भाव है। अर्थात्‌ यह भाव धन भाव का लाभ भाव है। दोनों भाव के इस सम्बन्ध से सीधे तौर पर यह कहा जा सकता है कि धन अधिक चाहिए तो व्यय को कम करना होगा। दूसरे शब्दों में इस भाव के द्वारा यह जाना जा सकता है कि जातक अपने धन का उपयोग विलासिता पूर्ण जीवन जीने में या भोग विलास की सामग्री क्रय करने में करेगा अथवा धन का संचय करेगा। यदि बारहवें भाव का स्वामी दूसरे भाव में स्थित हो जाए तो हो सकता है कि जातक विदेश से धन कमाए। यदि अशुभ प्रभावों में हो तो इस स्थिति में जातक अपने कुटुंब के धन का नाश भी कर सकता है। यदि पत्रिका में यह स्थिति बनती है तो जातक को अपने रूप, अपनी वाणी अथवा अपने धन का अहंकार छोड़ना चाहिए तथा अपने धन द्वारा अपने कुटुंब की सहायता करनी चाहिए तभी वह इस स्थिति के अच्छे परिणाम को प्राप्त कर सकेगा। 

बारहवाँ भाव तीसरे भाव से दसवाँ स्थान है अर्थात्‌ इस भाव से भाई-बहनों का कार्य क्षेत्र देखा जा सकता है। चूँकि तीसरा भाव समाजिक दायरा, संवाद की कला, आस-पड़ोस इत्यादि को भी इंगित करता है, अतः बारहवें भाव से जातक का समाज में मान-सम्मान भी देखा जा सकता है। इसके साथ ही बारहवें भाव से छोटी-छोटी यात्राओं में होने वाले व्यय को भी जाना जा सकता है, क्योंकि तीसरा भाव छोटी यात्राओं को भी दर्शाता है। यदि बारहवें भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो जाए तो हो सकता है कि जातक के भाई-बहन विदेश जाएँ अथवा जातक स्वयं विदेश की यात्राएँ कर सकता है। तृतीय भाव पराक्रम अथवा पुरुषार्थ का भाव है अतः यह भी सम्भव है कि जातक विदेश में अथवा विदेशी कंपनी में अपना पराक्रम दिखाएँ। इस स्थिति में जातक अक्सर घर से दूर कार्य करने पर सफलताएँ प्राप्त करते हुए देखे जाते हैं। 

बारहवाँ भाव चौथे भाव से नवाँ भाव है। चतुर्थ भाव माता का होता है, अतः इस भाव से माता का धर्म अथवा माता की आध्यात्मिक रुचि को देखा जा सकता है। चतुर्थ भाव जातक के सुख का भी होता है अतः बारहवें भाव से जातक के सुख के धर्म को देखा जा सकता है। अर्थात्‌ जातक को मोक्ष में सुख की प्राप्ति होगी अथवा भोग विलास इत्यादि में, इसकी जानकारी बारहवें भाव से ही प्राप्त हो सकती है। यदि बारहवें भाव का स्वामी चौथे भाव में स्थित हो जाए तो यह जातक की सुख शान्ति का व्यय करवा सकता है। इस स्थिति में हो सकता है कि जातक घर की ज़रूरतों पर अत्यधिक व्यय करे अथवा वह घर से दूर भी हो सकता है। हो सकता है कि जातक की माता साध्वी प्रकृति की हो या जातक स्वयं भी माँ से प्रेरित होकर साधना की ओर अग्रसर हो जाए। जातक अपने घर का माहौल शान्तिपूर्ण बनाने की दिशा में भी प्रयासरत हो सकता है, ताकि वह घर पर ही साधना कर सके। इस स्थिति में जातक को चाहिए कि वह अपने मकान, वाहन अथवा सम्पत्ति का अहंकार त्याग करे, तभी वह इस स्थिति के अच्छे परिणाम को प्राप्त करने में सक्षम हो पाएगा। 

यह भाव पाँचवें का आठवाँ है। पाँचवाँ भाव संतान का भाव है, अतः बारहवें भाव से संतान की आयु देखी जा सकती है। संतान देर से होगी या जल्दी यह भी देखा जा सकता है। यदि बारहवें भाव का स्वामी पाँचवे भाव में स्थित हो जाए तो यह स्थिति संतान अथवा बुद्धि का व्यय करवा सकती है। हो सकता है कि जातक की संतान शिक्षा इत्यादि के कारण जातक से दूर चली जाए अथवा जातक की उसकी संतान के साथ वैचारिक मतभेद हों। सम्भव है कि जातक की ऊर्जा संतान को समझाने में व्यय होती हो अथवा जातक किसी ऐसे कार्य में रत हो जिसमें उसे अपनी बुद्धि का अत्यधिक व्यय करना पड़ता हो। सम्भव है कि जातक स्वयं अपनी पढ़ाई के लिए विदेश जाए। जातक को अपने प्रेम सम्बन्धों के लिए भी काफ़ी अधिक व्यय करना पड़ सकता है। जातक अपनी योग्यताओं को बढ़ाने के लिए भी अत्यधिक व्यय कर सकता है। 

यह भाव छठवें का सातवाँ भाव है। छटवाँ भाव रोग ऋण और शत्रुओं का भाव होता है। अतः बारहवाँ भाव यह बताता है कि रोग, ऋण और शत्रु जातक को किस तरह प्रभावित करेंगे। जातक के रोग अस्पताल जाने से ठीक होंगे अथवा यूँ ही ठीक हो जाएँगे। जातक अपने शत्रुओं अथवा अपने क़र्ज़ों पर विजय प्राप्त करेगा अथवा नहीं, जातक किसी क़ानूनी कार्यवाही में उलझेगा का अथवा नहीं। यदि बारहवें भाव का स्वामी छठवें भाव में स्थित हो जाए तो यह रोग, ऋण और शत्रुओं का व्यय करवाता है। इसी कारण से इस स्थिति को विपरीत राजयोग के नाम से जाना जाता है। लेकिन अशुभ स्थितियों में यह भी सम्भव है कि जातक को रोगों के उपचार में अथवा न्यायिक प्रकरणों में अथवा शत्रुओं के नाश के लिए अपनी ऊर्जा तथा धन का व्यय करना पड़े। लेकिन इस स्थिति में जातक अपने रोग ऋण अथवा शत्रुओं पर विजय अवश्य प्राप्त करता है। 

बारहवाँ भाव सप्तम का छटवाँ है। अर्थात्‌ इस भाव से जातक के जीवनसाथी तथा व्यावसायिक भागीदार के रोग, ऋण तथा शत्रुओं की जानकारियाँ प्राप्त की सकती हैं। यह भी देखा जा सकता है कि जातक का जीवनसाथी अथवा व्यवसायिक भागीदार जातक के लिए शत्रु की भाँति है अथवा मित्र की भाँति। इसके अलावा इस भाव से जातक के जीवनसाथी के जीवन में आने वाली प्रतियोगिताओं के बारे में भी जाना जा सकता है। यदि बारहवें भाव का स्वामी सप्तम भाव में स्थित हो जाए तो वह सप्तम भाव के कार्यकत्वों का व्यय करवा सकता है। इस स्थिति में जातक के कई विवाहेतर सम्बन्ध हो सकते हैं अर्थात्‌ जातक अपनी शारीरिक लालसा की पूर्ति के लिए अपनी ऊर्जा तथा धन का व्यय कर सकता है। जातक का पति अथवा पत्नी विदेश से आ सकती है। सप्तम भाव दशम का दशम स्थान है। अतः इस स्थिति में जातक विदेश में जाकर काम भी कर सकता है। जातक अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए भी धन का व्यय कर सकता है। 

यह भाव अष्टम से पांचवाँ है। अष्टम स्थान सप्तम का दूसरा है अर्थात्‌ यह विवाह स्थान का धन स्थान है। तभी तो इसे मांगल्य स्थान कहा जाता है। अर्थात्‌ अष्टम भाव पति पत्नी के भोग का स्थान भी है। बारहवाँ स्थान अष्टम का पंचम है। पंचम स्थान आनंद प्राप्ति के लिए भी जाना जाता है। अर्थात्‌ पति-पत्नी के भोग विलास में उन्हें कितना आनंद आता है इसकी व्याख्या बारहवाँ भाव कर सकता है। अष्टम स्थान मृत्यु का भी स्थान है बारहवाँ भाव मृत्यु भाव का पंचम स्थान है। अर्थात्‌ मृत्यु का आनंद स्थान है। तभी तो इसे मोक्ष स्थान कहा गया क्योंकि मृत्यु का आनंद मोक्ष प्राप्ति में ही है। अष्टम स्थान ससुराल पक्ष का स्थान भी है अतः जातक को उसके ससुराल में कितना आनंद आता है इसकी व्याख्या भी बारहवाँ भाव कर सकता है। यदि बारहवें भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तो यह जातक को वैराग्य दे सकता है, क्योंकि बारहवाँ भाव तथा अष्टम भाव दोनों ही मोक्ष त्रिकोण के भाव हैं। इस स्थिति में सम्भव है कि जातक अपने ससुराल पक्ष के लिए व्यय करे। जातक ज्योतिष शास्त्र, शोध कार्य, तंत्र साधना इत्यादि विधाओं को सीखने के लिए भी धन का व्यय कर सकता है। 

बारहवाँ भाव नवम भाव का चतुर्थ भाव है। नवम भाव उच्चतर शिक्षा तथा आध्यात्मिक शिक्षा का स्थान है। यह पिता का भी भाव है। और चतुर्थ भाव सुख स्थान कहा जाता है। अतः उच्चतर शिक्षा अथवा आध्यात्मिक शिक्षा के द्वारा जातक को कितने सुख की प्राप्ति होती है इसकी जानकारी बारहवाँ भाव दे सकता है। तभी तो यह मोक्ष भाव भी कहलाता है क्योंकि आध्यात्मिक शिक्षा का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना ही तो है। इसके अलावा जातक को पिता का सुख प्राप्त होगा अथवा नहीं यह भी बारहवें भाव से जाना जा सकता है। यदि बारहवें भाव का स्वामी नवम भाव में हो तो जातक तीर्थ यात्राओं पर, धार्मिक अनुष्ठानों पर, प्रवचन सुनने के लिए, मंदिरों में दान देने के लिए, अपने गुरुओं पर अथवा पिता के लिए धन तथा ऊर्जा का व्यय कर सकते हैं। 
बारहवाँ भाव दशम भाव का तृतीय भाव है। दशम भाव कर्म भाव कहलाता है तथा तृतीय भाव पराक्रम या पुरुषार्थ का भाव है। अतः जातक अपने कार्य क्षेत्र में कितना पुरुषार्थ कर सकता है तथा वह अपने कार्यक्षेत्र में कितना साहसी होगा यह सब बारहवाँ भाव बता सकने में सक्षम है। यदि बारहवें भाव का स्वामी दशम में स्थित हो तो जातक का कर्म क्षेत्र विदेश से जुड़ सकता है। कार्य की सिलसिले में जातक को विदेश यात्राएँ भी करनी पड़ सकती हैं। कार्य क्षेत्र में जातक की ऊर्जा का व्यय होता रहता है। जातक का कार्य क्षेत्र अस्पताल, मंदिर, आश्रम, पागलख़ाने इत्यादि भी हो सकता है। इस स्थिति में जातक को अपने कार्य क्षेत्र में अहंकार से दूर रहना चाहिए, तभी वह बेहतर प्रदर्शन करने में सक्षम होगा अन्यथा इस स्थिति में जातक की नौकरी बार-बार छूटने की आशंका भी रहती है। 

बारहवाँ भाव ग्यारहवें भाव का दूसरा भाव है। ग्यारहवाँ भाव लाभ भाव कहलाता है। अतः बारहवाँ भाव लाभ का भोग है। अतः जातक अपने लाभ को किस प्रकार भोगेगा, यह बारहवें भाव से जाना जा सकता है। अर्थात् जातक अपने लाभ का उपयोग भोग विलास, विदेश यात्रा इत्यादि में करेगा अथवा किसी आश्रम, मंदिर, अस्पताल इत्यादि में करेगा, इसकी जानकारी बारहवाँ भाव देने में सक्षम है। यदि बारहवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो यह जातक का अत्यधिक व्यय करवा सकता है, ऐसी स्थिति में जातक की बचत कम होती है। हालाँकि इसका एक पहलू यह भी है कि जातक को विदेश से आय हो सकती है। इस स्थिति में जातक रोगों पर विजय प्राप्त कर सकता है क्योंकि ग्यारवाँ भाव छठवें का छटवाँ है। इस स्थिति में जातक अपनी इच्छा पूर्ति के लिए काफ़ी ख़र्च कर सकता है। 

यदि बारहवें भाव का स्वामी बारहवें भाव में ही हो तो यह जातक को वैराग्य दे सकता है क्योंकि बारहवाँ भाव मोक्ष त्रिकोण का सर्वोच्च भाव है। यह स्थिति जातक को साधना की ओर अग्रसर कर सकती है, इसके अलावा इस स्थिति में जातक विदेश में जाकर बस सकता है। जातक किसी आश्रम में सेवक भी बन सकता है अथवा किसी गुरु का शिष्य भी बन सकता है। वह अस्पताल अथवा जेल का अधिकारी भी बन सकता है यदि अशुभ प्रभाव में हो तो यह स्थिति विवाहेतर सम्बन्धों की ओर इशारा करती है क्योंकि यह भाव मोक्ष स्थान के साथ-साथ भोग का स्थान भी है। 

बारहवें भाव में अलग-अलग ग्रह अपना अलग-अलग प्रभाव देते हैं। यदि बारहवें भाव में सूर्य स्थित हो तो यह सरकारी नौकरी प्रदान करने में सहायक हो सकती है। यदि चंद्रमा स्थित हो जाए तो जातक की उसकी माता से दूरी रहती है। इस स्थिति में जातक का मन अस्थिर होता है। इस भाव में चंद्रमा अच्छे परिणाम प्रदान नहीं करता। यह विवाहेतर सम्बन्ध भी दे सकता है साथ ही बचपन में स्वास्थ्य में कमज़ोरी भी देता है, यहाँ स्थित चंद्रमा विदेश की यात्राएँ भी करवा सकता है। यदि बारहवें भाव में मंगल स्थित हो जाए तो यह एक क्रूर तथा लड़ाकू ग्रह होने के कारण होने के कारण शैया सुख में बाधा डालता है। यदि मंगल इस भाव में अत्यधिक पीड़ित हो तो वह क़ानूनी अड़चनें भी पैदा करता है। जहाँ स्थित मंगल जातक को दुर्घटना या चोट इत्यादि से परेशानी में डाल सकता है। यदि बारहवें भाव में बुध स्थित हो जाए तो काल पुरुष की कुंडली के अनुसार यह नीच राशि में होगा। अतः बुध की स्थिति भी इस भाव में अच्छी नहीं मानी जाती। यहाँ पर स्थित बुध कार्यक्षेत्र में ग़लत निर्णय दिलवा सकता है। इस भाव में यदि बुध वक्री भी हो तो अधिक ख़राब परिणाम प्रदान करता है। बारहवें भाव में यदि गुरु स्थित हो जाए तो यह जातक को आध्यात्मिक साधना से सम्बन्धित अच्छे परिणाम प्रदान करने में सहायता करता है। लेकिन यदि गुरु शुभ स्थिति में ना हो तो यह क़ानूनी अड़चनों के साथ पेट के रोग भी देने में सक्षम होता है। यदि बारहवें भाव में शुक्र स्थित हो तो काल पुरुष की कुंडली के अनुसार वह उच्च का होता है इसलिए शुक्र की यह स्थिति अच्छी मानी जाती है क्योंकि यहाँ पर स्थित शुक्र जातक को भोग विलास प्रदान करता है यहाँ तक की शुक्र इस स्थिति में जातक को साधना के मार्ग पर भी ले जा सकता है। यदि बारहवें भाव में शनि स्थित हो जाए तो वह जातक के शैया सुख, विवाह के सुख तथा यह भोग विलास में कमी कर देता है क्योंकि यह एक ठंडा और क्रूर ग्रह है। लेकिन यदि जातक संन्यास लेकर आध्यात्मिक साधना के मार्ग पर जाता है तब शनि की इस भाव में स्थिति जातक की सहायता करता है। इस भाव में स्थित राहु जातक को उच्छृंखल बना सकता है, इस स्थिति में वह केवल अपनी मर्ज़ी का मालिक हो जाता है। केतु की इस भाव में स्थिति अच्छी मानी जाती है क्योंकि यह जातक को आध्यात्मिक उन्नति तथा मोक्ष प्राप्ति की राह पर ले जाता है। यदि बृहस्पति की दृष्टि भी इस पर पड़ जाती है तो इस दिशा में और भी अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। 

इस तरह बारहवें भाव तथा उसकी भावेश की शुभ अशुभ स्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए, पत्रिका में इस भाव से सम्बन्धित कार्यकत्वों की विवेचना की जा सकती है। 

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