सफ़र (राहुलदेव गौतम)

15-03-2020

सफ़र (राहुलदेव गौतम)

राहुलदेव गौतम (अंक: 152, मार्च द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

कभी आईने की तरह देखना मुझे
तुम्हारे ही अक्स के शक्ल में
नज़र आऊँगा मैं।


ज़िन्दगी के ज़िम्मेदारियों ने
ख़्वाहिशों के बदले में
अंधा और बहरा बना दिया।


लोगों की निगाहें
ऐसी क्यों हो जाया करती हैं?
किसी दूसरे की ज़िन्दगी,
जिन्दगी नहीं
कोई गुनाह हो।


कुछ भी नहीं है अपना,
एक ज़िन्दगी थी अपनी
लेकिन यह भी सज गई 
पराये बाज़ार की तरह
जिसे हर शख़्स ख़रीदना चाहता है।


सबको जीत मुबारक
मुझे मेरी शिकस्त के साथ
ख़ुश रहने दो।


कुछ ख़्वाहिशें बिक जाती हैं
जीवन के बाज़ार में
कोई ख़रीद लेता है
कोई बिक जाता है।
 

अगर ये रंजिशें माँ-बाप की तरह होतीं
कुछ और रूठ लेता
कुछ और पाने के लिए।

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