सिगरेट के धुँए में
फैलता है
मेरे संवेदनाओं का बादल
जो संशकित हो कर
इधर-उधर दौड़ता है
और जब ठहरता है
सिगरेट के दूसरे कश में
जो धुंध के रूप में
परिवर्तित हो जाता है
जिसमें मेरी भयावह
इच्छाएँ,
मेरी साँसें घोंटने
लगती हैं,
नब्ज़ बैठने ही लगती है
तभी कोई चुपके से...
आवाज़ देकर चला
जाता है।