ख़्यालों का समन्दर

15-01-2020

ख़्यालों का समन्दर

राहुलदेव गौतम (अंक: 148, जनवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

एक माँ ही थी।
जो मेरी कामयाबी पर,
बेहिसाब ख़ुश रहा करती थी।
लोग तो मुस्कुराते है सिर्फ़,
मुझे ख़ुश करने के लिए।


दिल क्यों धड़कता है?
पूछ बैठा उस शख़्स से,
जो पत्थर तराशता है।


दुनिया से जल-जल कर
क्या पाया मैंने?
चिता पर जलाने वाले मुझे,
मेरे-अपने ही थे।


जब से दोस्ती शुरू की..
पता चला मुझको,
दुश्मनों के तादात में 
इज़ाफ़ा हो गया।


जो कभी खोले नहीं थे,
अपने आँखों के परदे।
आज उसका दरवाज़ा भी खुला था।
खिड़कियाँ भी खुलीं थीं,
बड़ी देर से मेरे मय्यत पर..
लोगों का तमाशा जो हो रहा था।

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