गेहूँ और मैं

01-07-2020

गेहूँ और मैं

राहुलदेव गौतम (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

जब जब मैंने
गेहूँ को काटा
मेरे हाथ ख़ून से सने
जब जब मैंने
गेहूँ को खाया
मेरा चेहरा ख़ून से लथपथ था
मैं कैसे भूल गया
इस गेहूँ की उपज
यूँ ही नहीं हुई थी...
मेरे गाँव के
किसानों के ख़ून का क़तरा क़तरा
उन खेतों में फैला हुआ था
काँपते हाथों से
मैंने उस पेड़ से
वह रस्सी उतारी थी
जो हमारे खेतों की मेड़ पर थी
जिसके फंदे पर लटक रहे थे
मेरे गाँव के चार किसान
जिसमें एक लाश
मेरे दादा जी की थी।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में