धार

राहुलदेव गौतम (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

जर्जर झरे मुँडेर पर

समय के आघात से लहूलुहान

नित नवीन अँधेरों में

चुपचाप बैठा

एक नए सवेरे के,

इंतज़ार में बाॅ॑ग देता

एक अंतहीन मुर्गा हूँ।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में