सुनो! तुम भाग्य के छल से मत डरना

01-02-2024

सुनो! तुम भाग्य के छल से मत डरना

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 246, फरवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

सुनो! तुम भाग्य के छल से
मत डरना; 
‘कल’ से
मत सहमना; 
मत डरना
जब मेरी साँसें मंद होने लगें; 
तुम्हारा नाम लेते
आँखें बंद होने लगें; 
मेरे नहीं होने पर भी, 
मुझे अनुभूत करना; 
तुम तब भी होना, 
और मेरी स्मृति सँजोना। 
तुम्हारी सुंदरता को
समर्पित; 
तुम्हारी श्रेष्ठता के लिए
अर्पित; 
इस प्रेम कहानी को
गुनगुनाना; 
जैसे मेरी ‘धरोहर’ हो
ऐसे स्वयं को सँभालना; 
सुनो! तुम भाग्य के छल से
मत डरना; 
‘कल’ से
मत सहमना। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
कविता - क्षणिका
कविता-मुक्तक
कहानी
खण्डकाव्य
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में