जय पर अनंत विश्वास रहे
संजय कवि ’श्री श्री’इतिहास प्रमाणित करता है,
समर यहाँ कब सरल रहा;
उगल चुके हैं सब अपना,
जिसमें जितना गरल रहा।
जो होता है सब अच्छा है,
मित्र शत्रु पहचान लिए;
रणभूमि के चक्रव्यूह में,
सारे पथ तुमने जान लिए।
हियँ धरि बजरंगी, हे अनन्य!
जय पर अनंत विश्वास रहे;
बूँद बूँद से बना है सागर,
अटल सदा ये आस रहे।
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