अमिट रहे ये नेह तुम्हारा

01-11-2022

अमिट रहे ये नेह तुम्हारा

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

नश्वर युग की माया में, 
अमिट रहे ये नेह तुम्हारा; 
विपुल अनंत अंबर जैसा, 
शाश्वत हो ये मेल तुम्हारा। 
 
कोटि सहस्त्र आशीष तुम्हें, 
मम हृद से उपजी हे तनये! 
मैं हूँ ना हूँ तुम अमर रहो, 
हो कीर्ति असीम सकल वसुधे। 
~संजय कवि 'श्रीश्री'

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