हे जननी!

01-08-2022

हे जननी!

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मम शीश तुम्हारे चरण सदा, 
आश्रय तव आँचल, हे जननी! 
 
तव ऋण शतांश भर सेवा है, 
है अल्प समक्ष सकल करनी। 
 
तव तनय हूँ सदा महीप रहूँ, 
तव आयु अनंत हो, हे जननी! 
 
मम जीवनकाल समीप रहूँ, 
तव मंद हँसी हो सदा रमनी। 
 
मम शीश तुम्हारे चरण सदा, 
आश्रय तव आँचल, हे जननी! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
कविता - क्षणिका
कविता-मुक्तक
कहानी
खण्डकाव्य
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में