सोनम सोनम पुकारना चाहता हूँ

15-12-2022

सोनम सोनम पुकारना चाहता हूँ

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 219, दिसंबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

‘प्रिये‘ को समर्पित . . . 
 
वाद्य तुम यदि बन सको तो सत्य झंकृत हो उठे मन; 
तुम्हारे मन से मन स्पर्श कर, हिय में उतरना चाहता हूँ। 
 
कामना यही, न ही तुममें तुम रहो और न ही मुझमें मैं रहूँ; 
दर्शन अतुल सौंदर्य देख, उन्माद भरना चाहता हूँ। 
 
आलिंगन मिलन में भूल कर, शब्द सारे, लिपि सभी, 
स्मरण बस एक ‘सोनम’ सोनम पुकारना चाहता हूँ। 
 
ये फिसलते पाँव मेरे, और पथ है कितना जटिल जीवन; 
थाम कर बाँहें तुम्हारी अब सँभलना चाहता हूँ। 
 
प्रिये तुम इतना समझ लो, तुममें ही सर्वस्व है; 
मैं ज्ञान योग भूलकर, आसक्त होना चाहता हूँ। 
 
पपीहे की प्यास जैसा मैं, स्वाति की दुर्लभ बूँद तुम;
संकोच तज बरस पड़ो, प्रणय रस मैं पीना चाहता हूँ। 
 
वाद्य तुम यदि बन सको तो सत्य झंकृत हो उठे मन; 
तुम्हारे मन से मन स्पर्श कर, हिय में उतरना चाहता हूँ। 

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