मित्रता में कपट कर

15-05-2024

मित्रता में कपट कर

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

मित्रता में कपट कर
तुम छिछोरे ही रहोगे; 
लूट कर छल से मुझे
दरिद्र होकर ही मरोगे। 
पूज लो हर देव तुम
ये घात तुमको न फलेगा; 
तुम्हारे विश्वासघात को
तुम्हारी संतति भरेगा। 
यदि तनिक भी प्रेम
तुमसे मुझे रहा होगा; 
यदि तनिक भी दुख
तुम्हारा मैंने सहा होगा। 
तो ये बजरंग श्राप है
देखोगे अपनी आँख से; 
कुंठित कलंकित वंश को
निर्बल विखंडित पाँख से। 
समय तब सम्मुख खड़ा
ध्वंस कर पूछेगा तुमसे; 
“तुम बड़े निर्दोष थे”
ये कह सकोगे किस मुँह से। 
कर्म से हैं देव ईश्वर
कर्म से दानव बने हैं; 
कर्म से संतति मिटाते
तुम जैसे मानव बने हैं। 
मित्रता में कपट कर
तुम छिछोरे ही रहोगे; 
लूट कर छल से मुझे
दरिद्र होकर ही मरोगे।

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